पेशाब घर की शोभा बढ़ा रही है गेट पर लटकते हुए यें तालें और पेशाब लगने पर भटकते नजर आते हैं लोंग, आखिर इसका जिम्मेदार कौन नगर निगम या जनता..?
लाइव पलामू न्यूज/मेदिनीनगर (नितेश तिवारी/कुमार सानू ) : अगर आप हैं मेदिनीनगर शहर के बाजार में और आपको प्रेशर पर पड़ गया तो, क्या करेंगे आप ?? आसपास शौचालय /पेशाबघर ही ढूंढेंगे न.? लेकिन जरा रूकिए शहर की शौचालयों की स्थिति और दशा देखकर तो आप कहेंगे न बाबा इससे बेहतर तो खुले में ही जाना सही रहेगा, इसके अलावा आप करेंगे भी तो क्या करेंगें। उधर स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है। जगह – जगह पर शौचालय का निर्माण करवा रही है। जागरूकता अभियान चलाकर जनता को खुले में शौच न करने की सलाह दे रही है। लेकिन यह प्रयास तभी सफल हो पाएगा जब इसके लिए जनता स्वयं से प्रयास करें । इसके साथ ही हमारा नगर निगम का भी प्रयास शामिल हो।

ऐसा हम इस लिए कह रहे है क्योंकि आज हमारी लाइव पलामू की टीम शहर में मेदिनीनगर नगर-निगम द्वारा जगह-जगह पर स्थापित किये गए पेशाब घरों/शौचालयों की स्थिति को देखा जो काफी दयनीय था। जब हमारी टीम महिला महाविद्यालय के नजदीक स्थापित पेशाब घरों/शौचालय के पास पहुंचा तो वहां ताला लटका हुआ पाया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है की जब शौचालय बनाया गया है तो उसमें ताला क्यों लगा हुआ है??

शहर में शौचालयों/पेशाब घरों का निर्माण इसलिए ही न किया गया है, ताकि लोग इधर उधर मल- मूत्र का त्याग न करें। लेकिन इस तरह से शौचालय पर लटका ताला आखिर क्या साबित कर रहा है?? वहीं सेवा सदन के पास स्थापित शौचालय/पेशाब घर की स्थिति देखकर तो ऐसा लग रहा था जैसे कि कई वर्षों से वहां सफाई न हुई हो।
इसके अलावा अगल- बगल लोगों ने गंदगी फैला रखी थी लोग शौचालय के बाहर मूत्र त्याग कर रहे थें। इस संबंध में वहां के दुकानदारों ने बताया कि नगरनिगम का सफाईकर्मी कभी -कभार आकर सफाई कर जाता है। लेकिन यह ऐसी जगह है जहां कि सफाई रोज होना अति आवश्यक है। उन्होंने बताया कि शौचालय के बाहर ही वे और उन जैसै कई लोग मूत्र त्याग करते हैं क्योंकि एक तो शौचालय की स्थिति इतनी दयनीय है दूसरा शौचालय के ऊपर लगी टंकी में पानी भी नहीं होता उसे केवल दिखावे के तौर पर लगा दिया गया है।

वहीं जिला स्कूल के पास स्थित शौचालय में भी ताला लटका हुआ था। आस पास के लोगों ने बताया कि इसका निर्माण होने के बाद कुछ दिनों तक तो इसे खोला गया लेकिन उसके बाद से आज तक इस पर ताला ही लटका हुआ है। जनता में इस बात को लेकर नगर- निगम के खिलाफ काफी रोष भी प्रकट किया, उनका कहना था कि या तो शौचालयों/पेशाबघरों की स्थापना ही न की जाए नहीं तो फिर सुविधाएं दी जाएं। केवल दिखावे के लिए इस तरह का निर्माण न कराया जाए। वहीं थाना के पास स्थापित शौचालय की हालत अत्यंत दयनीय थी। लोगों ने बताया कि शौचालय की सफाई गाहे-बगाहे ही किसी अवसर पर की जाती है।
शहर के लगभग हर शौचालयों/पेशाबघरों की यही स्थिति थी। कहीं पर ताला लटका तो कहीं इतनी गंदगी की उसकी तरफ देखने का मन ही न करे। यह स्थिति स्वच्छ भारत अभियान को मुंह चिढा़ती नजर आ रही है। विभिन्न पेशाब घरों की स्थिति ऐसी देखने के बाद अब इसपर सवाल यह उठता है कि इन शौचालयों/पेशाबघरों के होने न होने से आम जनता को कोई फायदा होता हुआ नही दिखाई दे रहा है। अगर हम पुरुषों की बात करें तो उन्हें विशेष फर्क नहीं पड़ता लेकिन महिलाओं का क्या?? वैसी महिलाएं या स्कूल/कॉलेज जाने वाली छात्राएं जिन्हें अगर बीच रास्ते में बाथरूम जाने की आवश्यकता पड़ जाए तो?? या तो घर पहुंचने तक का इंतजार करेंगी या फिर वैसी जगह की तलाश जहां भीड़भाड़ न हो।

ज्यादातर तो दूसरे वाले ऑप्शन को ही तरजीह देती होंगी। क्योंकि एक तो सबका घर शहर में ही हो ये संभव नहीं और दूसरा ये कि यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसे बहुत ज्यादा देर तक रोका भी नहीं जा सकता। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है?? आम जनता/ नगर निगम या फिर कोई और ??
