#Latehar उड़ान परियोजना तहत PVTG परिवारों को रागी की खेती से जोड़ा गया
लाइव पलामू न्यूज़: लातेहार जिले के बरवाडीह में उड़ान परियोजना अंतर्गत PVTG परिवारों को रागी की खेती से जोड़ा गया। पिछले साल 400 परिवारों ने रागी की खेती से अच्छी आमदनी मिली थी। इस साल जिला प्रशासन द्वारा मुफ्त बीज देकर और ज्यादा किसानों को रागी खेती से जोड़ा जा रहा है ताकि आमदनी सुनिश्चित की जा सके।।

जाने क्या है रागी
इसको फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा आदि के नाम से उपलब्ध है। यह सबसे पुरानी खाने वाली और पहली अनाज की फसल है, जो घरेलू स्तर पर प्रयोग की जाती है। इसका असली मूल स्थान इथिओपीआई उच्च ज़मीन है और यह भारत में लगभग 4000 साल पहले लायी गई थी। इसको शुष्क मौसम में उगाया जा सकता है।



यह गंभीर सोखे को भी सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। यह कम समय वाली फसल है और इसकी कटाई 65 दिनों में की जा सकती है। इसको बड़ी आसानी के साथ सारा साल उगाया जा सकता है। सारे बाजरे वाली फसलों में से यह सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है।
बाकी अनाज और बाजरे वाली फसलों के मुकाबले इसमें प्रोटीन और खनिजों की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें महत्वपूर्ण अमीनो तेज़ाब भी पाया जाता है। इसमें कैल्शियम(344 मि.ग्रा.) और पोटाशियम(408 मि.ग्रा.) की भरपूर मात्रा होती है। कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए यह बहुत लाभदायक है, क्योंकि इसमें लोह तत्वों की काफी मात्रा होती है।
इसको बहुत किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है, जैसे कि बढ़िया दोमट से जैविक तत्वों वाली कम उपजाऊ पहाड़ी मिट्टी आदि। इसको बढ़िया निकास वाली काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, क्योंकि यह सोखित पानी को काफी हद तक सहन कर सकती है। रागी के लिए pH 4.5-8 वाली मिट्टी सबसे बढ़िया मानी जाती है। पानी सोखने वाली मिट्टी को इसकी खेती के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
और राज्यों की किस्में
एक रिपोर्ट के मुताबिक यह महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्यों को छोड़ कर झारखंड सहित बाकी राज्यों में उगाई जा सकती है। यह 95-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 कुइंटल प्रति एकड़ है।



ज़मीन की तैयारी
1) फसली- चक्र: रागी की फसल के लिए फसली- चक्र बहुत ही मह्त्वपूर्ण विधि है| इसके साथ ज्यादा पैदावार मिलती है और ज्यादा रासायनिक खादें डालने की भी जरूरत नहीं होती। इसके साथ मिट्टी में उपजाऊपन भी बना रहता है। उत्तरी भारत में रागी की फसल के साथ चने, सरसों, तम्बाकू, जों, अलसी आदि फसलों को फसली- चक्र के लिए अपनाया जाता है।
2) अंतर्-फसली: उत्तरांचल में, रागी और सोयाबीन को भर के आधार पर 90:100% पर मिलाया जाता है और फिर बिजाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में रागी+सोयाबीन खरीफ में और जवी रबी में उत्तम और लाहेवन्द फसल कड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है।



सेजु फसलों में, 2-3 बार गहरी जोताई करें ताकि नमी को संभाला जा सकें। बिजाई से पहले खेत की दोबारा जोताई करें और समतल बैड तैयार करने के लिए ज्यादा डंडों वाली कसी का प्रयोग जरूरी है। बिजाई से पहले ज़मीन को हल्का नर्म करें, इसके साथ मिट्टी में नमी की मात्रा को संभाला जा सकता है। उत्तरांचल में जोताई करना बहुत मुश्किल है, जिसके कारण मिट्टी उखड़ना और उथल-पुथल करना, ज्यादा पुराने नदीनों को निकालना, ज़मीन नर्म करना, मिट्टी की ढलानें बनाना आदि में परेशानी आती है, जिनकी मदद के साथ जरूरत ना होने वाले पानी निकाला जा सकता है।