लातेहार जिले का यह गांव बरसात आते ही बन जाता है टापू
लातेहार/हेरहंज (रूपेंद्र कुमार): प्रखण्ड मुख्यालय से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित सलैया पंचायत का कटांग गाँव समेत चार गाँव के लोगों की जिंदगी बरसात के दिनों में थम जाती है। बारिश के दिनों में में यह गाँव टापू बन जाता है। गाँव के पास से गुजरी पातम नदी में पुल नहीं होने के कारण बारिश के दिनों में अगर एमरजेंसी रही तो ग्रामीणों को जिंदगी दांव पर लगाकर नदी पार करना पड़ता है और नहीं तो 10 किमी की दूरी अधिक तय करनी पड़ती है। इस गाँव के ग्रामीण वर्षों से पुल निर्माण की मांँग करते आ रहे हैं पर यहांँ के ग्रामीणों को लगता है कि शासन को ग्रामीणों की चिंता ही नहीं है जिसका खामियाजा ग्रामीण आज तक झेल रहे है।

मुसीबत न आए इसलिए प्रार्थना करते हैं ग्रामीण
नदी में बाढ़ आने पर बारिश में ग्रामीण ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि घर के किसी सदस्य की तबीयत न बिगड़े। वहीं प्रसव पीड़ा जैसी समस्या सामने न आए क्योंकि ऐसी स्थिति में नदी पारकर अस्पताल ले जाना मुश्किल हो जाएगा।यदि रात के समय में हेरहंज से कोई झोला छाप डॉक्टर को भी बुलाना पड़े तो बहुत मुश्किल हो जाती है।

पुल के बिना थम जाती है जिंदगी
गाँव में पंचायत के माध्यम से हर सुविधा उपलब्ध कराने के दावे किए जा रहे हैं परंतु यहांँ की हकीकत कुछ और ही है । आवागमन के लिए सड़क पर एक उच्च स्तरीय पुल की मांग वर्षों बाद भी पूरी नही हो पाई । पुल के बिना गांँव का विकास अधूर और चार माह तक ग्रामीणों की जिंदगी थम सी जाती है। स्थिति यह है कि बिजली लाइन में कोई फाल्ट आ जाता है तो ग्रामीण बाढ़ का पानी उतरने का इंतजार करते हैं, क्योंकि बिजली कंपनी के कर्मचारी बाढ़ का बहाना कर सुधार करने नहीं आते। अंतत बिजली आपूर्ति बाधित हो जाती है।

गांँव के युवा प्रभात उरांव ने बताया कि बारिश होते ही परेशानियों का दौर शुरू हो जाता है। भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं कि गांँव की किसी भी महिला को बारिश के दिनों में प्रसव संबंधी शिकायत न हो, और अन्य लोग भी स्वस्थ रहें क्योंकि बाढ़ के बीच नदी पार कराना यानि दो जिंदगी को खतरे में डालना है। गांँव के विशुनदेव ने बताया कि बाढ़ में बहने का खतरा रहता है, इसके बाद भी अत्यंत जरूरी रहने पर मजबूरी वश नदी पार करते हैं।

वहीं स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि सरकार पुल नहीं बनाकर ग्रामीणों की जिंदगी को खतरे में डाल रही है। गांव के बुजुर्ग धिरत गंझू ने बताया कि नदी में काफी दिनों तक बाढ़ रहने के कारण यदि कोई व्यक्ति बीमारी की वजह से गांव में मर जाता तो उसे बिना कफ़न के ही हमलोगों को जलाना पड़ा है और यह आज नहीं पांच वर्ष पहले की बात है।

एक वर्ष पूर्व चर्चा में आया था ग्रामीणों द्वारा बनाया गया झूला पुल
नदी में पुल बनाने की मांग करते करते थक चुके ग्रामीण युवा गांँव की महिलाओं की समस्या को देखते हुए खुद से श्रम दान कर और आपस मे चंदा एकत्र कर 200 फीट लंबा,15 फीट ऊंचा और चार फीट चौड़े पुल का निर्माण बांस,बल्ली,तार एवं लोहे के सहारे कर दिया और इस पुल का निर्माण कार्य बीते वर्ष जून माह में ही पूर्ण कर दिया और आवागमन भी शुरू हुआ,परन्तु नदी में आई उफनती बाढ़ ने एक माह में ही ग्रामीणों के इस मेहनत पर पानी फेर दिया जिसके बाद से आज फिर ग्रामीण उसी समस्या से ग्रसित हैं।
यह पुल बीते वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर चर्चे में आया था और ग्रामीणों के इस कार्य की प्रशंसा चारों तरफ हुई थी, परन्तु आज तक न तो अधिकारियों ने इसकी सुधि ली और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने। ग्रामीण युवा प्रभात, निर्मल ने बताया कि नदी में बाढ़ आ जाने के बाद मुख्यालय तक जाने के लिए तीन किमी की जगह दस किमी की दूरी तय करनी पड़ती है और सरकार यदि यहांँ पर पुल और सड़क बना दे तो हम लोगों को मात्र तीन किमी की दूरी तय करनी पड़ेगी।
